Menu
blogid : 25396 postid : 1353811

रात का ताला टूटा है, दिन की चाबी गायब है

सुनो दोस्तों
सुनो दोस्तों
  • 51 Posts
  • 3 Comments

sky


रात का ताला टूटा है, दिन की चाबी गायब है।

बादल जान गया है, घर उसका आकाश नहीं है,

नमी और बिजली पर, जल को अब विश्वास नहीं है।

धुआं राख, अग्नि के वंशज कहते नहीं लजाते,

न जले ना जला सके, हल्की सी  उजास नहीं है।

खुद को धन्यवाद बदलता वो बदले या न बदले,

पहुँच बड़ी निराली, बचकाना परिहास नहीं है।

उम्र गिरवी रखना चाहो महाजनों की कमी नहीं,

पर मन तू खुद तय कर, बाकी कोई सांस नहीं है।

चौतरफा हलचल है अब कदमताल में तेजी है,

अपनों की फिकर नहीं, मंजिल का आभास नहीं है।

रात का ताला टूटा है दिन की चाबी गायब है,

सर पर हाथ फिराए, ऐसा अपना पास नहीं है।

सुर मधुर देह लचीली हार जीत संग अनीबनी,

बिना प्रेम ‘सुशीरंग’, कोई लीला रास नहीं है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh