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दोस्ती जिंदाबाद

सुनो दोस्तों
सुनो दोस्तों
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अगस्त का पहला रविवार दोस्ती के नाम किया हुआ है। वैसे यूएनए द्वारा विनयपूर्वक की गई घोषणा के अनुसार 30 जुलाई को दोस्ती का जलसा धूमधाम से मनाया जाए, पर हम और कुछ मुल्कों ने अगस्त का पहला सन्डे पसंद किया हुआ है।


friends


यारों, पहले तो आप सभी को मंगलकामनाएं, फिर सभी को सैल्यूट, अभिवादन। दुआ सलाम में मैंने अपने शारीरिक हावभाव और गालियों को भी शामिल किया हुआ है, जैसे धौल-धप्पा, चपत, पीठ पर घूँसा वगैरह भी इसमें शामिल है तथा कुछ गालियों का तड़का मारकर, कुछ को चाशनी में डुबोकर तो कुछ को तटस्थ शांत भाव से करीने से सजा रखा है। दोस्तों आप अपनी-अपनी पसंद की चीजें अंगीकार करें।


हैप्पी फ्रेंडशिप डे। नाना हूँ काफी समय से, अभी-अभी दादा भी हो गया हूँ। इन दोनों बच्चियों और दोनों बच्चों को उनके जन्म के लगभग तुरंत बाद डॉक्टर की मदद से मैंने देखा है। उनके नन्हें हाथ पैरों की हरकतें और रोना इन सबका एक ही तकाजा या अनुरोध होता है- छुअन, स्पर्श।


स्पर्श चाहते हैं, मतलब स्पर्श महसूस करने पर उन्हें बेचैनी से छुटकारा मिलता है और हो सकता है भय से भी। नवजात अवस्था में उनकी विवशता होती है कि वे खुद छू नहीं सकते। छू लिए जाने की अनुभूति होती है पर स्वयं छूकर अपने भीतर संवेदना की हलचल अनुभव नहीं कर सकते।


छू लिए जाने की संवेदना से मिला आनंद दरअसल एक उपजाऊ जमीन है, जो मैत्री (दोस्ती) जैसे भाव के लिए तैयार होती है। मुझे ऐसा लगता है कि बच्चे की पहली किलकारी होती ही इसलिए है कि वह खुद छूने के असर को महसूस कर लेता है। यही वह पल होता है जब वह ‘अपनेपन’ या ‘आत्मीयता’ से परिचित हो जाता है। यहाँ बच्चा मित्रता के लिए पूरी तरह तत्पर और तैयार है।


बच्चा अपने बड़े होने की प्रक्रिया में इस अपनेपन के अनुभव को स्पर्श के साथ-साथ दूसरे इन्द्रीय बोध जैसे देखने-दिखाने, सुनने-सुनाने व भाषा-बोली के जरिये भी समझने लगता है। अब यदि सब कुछ सामान्य हो, तो सखा या सखी के बिना रहना कठिन हो जाता है।


नाजुक उम्र में स्वयं को जैसा का वैसा (शत प्रतिशत) प्रकट करना न सिर्फ सरल-सहज है, बल्कि असली नीयत, आशय, इरादा, प्रयोजन, मंसूबा, मंतव्य या मुद्दे को छिपाने, ढंकने की जरूरत नहीं होती। इसीलिये बचपन की दोस्ती बड़ी मीठी, बड़ी टिकाऊ और बड़े भरोसे की होती है।


दोस्ती आपस के तंत्र का वह सम्बन्ध है, जहां सरलता है, सहजता है, भरोसा है। दोस्ती में दोस्तों की आज़ादी पूरी की पूरी सुरक्षित है। मिल-बाँटकर जीना बिना मित्रता के सीखना बिलकुल असंभव है। दोस्ती का अस्तित्व उसमें बसी सहज ईमानदारी के कारण होता है। ईमानदारी का पर्याय नैतिकता से है, तो मानना ही होगा कि दोस्ती का अस्तित्व उसमें बसी सहज और स्वयं पैदा हुई नैतिकता के कारण होता है।


दोस्ती के स्कूल में नैतिकता का पाठ कोई गुरु या शिक्षक नहीं, बल्कि सहपाठी या सहपाठियों की सोहबत सिखा देती है। सबसे बड़ी बात दोस्ती जैसे बचपन में होती है, वैसे ही बुढापे में होती है, उसकी जरूरत और नियम बदलते नहीं हैं। बड़ों की दुनिया से छोटों की दुनिया को बाहर करेंगे, दोस्ती जैसी भावना भी बाहर हो जायेगी। अगर आप दोस्ती बचाना जानते हैं, तो आप दुनिया को भी बचा सकते हैं।

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