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सुरों के जिम्मे कवायद

सुनो दोस्तों
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सुरों के जिम्मे कवायद

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कुछ संगीन सवाल पूछे तो सिर हिला दिए |

पिन कुशन से पिन हटाकर पिन लगा दिए |

उन्होंने अपनी गरज को दाना बनाकर फेंका,

हमने अपनी अकल से सब परदे हटा दिए |

किसके सीने पर सर रखकर मन करें हल्का,

तन पर सबने भारी जिरह बख्तर सजा लिए |

भीड़ की रंगरेजी ने मंजर सुर्खलाल कर दिया,

जमघट ने ढांप सफ़ेद सिर्फ आंसू बहा दिए |

गरीबी के नक़्शे में कोई पता गरीब का नहीं,

गुरबत को लम्बी ज़रीब की शोहरत बना गए |

फैसलों के पलों से घटिया मज़ाक कर लिया,

खोले कलम के ढक्कन कसकर लगा दिए |

तरानों के घरानों की पड़ताल जरूरी हो गयी,

‘सुशीरंग’ सुरों के जिम्मे कवायद लगा गए |

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[(गरज = ख़ास जरूरत), (जिरह बख्तर = कवच), (सुर्खलाल = गहरा लाल), (सफ़ेद = कफ़न), (ज़रीब = ज़मीन नापने की सांकल), (तराने = गान , घराने = संगीत के घराने ), (कवायद = कसरत, अभ्यास)]

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(मैंने अपना कविताई नाम “सुशीरंग” कर दिया है, माँ से सुशी और पिताजी से रंग | )

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