सुनो दोस्तों
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मैं और हम
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मैं
यानी स्वयं |
लगता रहा
मुझे अभी तक
मैं अपना आप नियंता |
आपदाओं ने
मेरे मैं के
दो फाड़ किये |
आधा भीतर
आधा बाहर
शायद
आधा अर्जुन
आधा कृष्ण |
देखा मैंने
मैं,तुम,वे
सबके अपने अपने
हस्तिनापुर हैं
अपने अपने कुरुक्षेत्र |
मालूम हुआ
ये समस्त हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र
एक सरीखे हैं |
मालूम हुआ
मैं नहीं अपना नियंता |
संसार के सारे मैं मिलकर
काल के सन्दर्भ हैं
काल के परिचय भी |
ये सन्दर्भ
ये परिचय
ही तो
काल का वर्तमान है |
हर भविष्य भूत हो जाता है
यह हम मानते है
काल इसे मैं का अबोध मजाक मानता है |
अहं
न तो
जिजिविषा की अभियक्ति
न ही
शालीन गर्वोक्ति |
मैं यानि अहं ब्रम्हास्मि
मैं यानि वर्तमान
अहं ब्रम्हास्मि यानि वर्तमान |
काल में शामिल सभी जन
और भी
और भी
पूर्ण वर्तमान है
पूर्ण ब्रम्ह है |
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