सुनो दोस्तों
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(1)
गीतन में गारी के रंग गजब पल पल में बदरे गिरगट सी |
होरी में मानो चलै सब है फिर हरकत हो चाहे हलकट सी |
‘स्सी’में खुमार अजब सो है चित्तचोर पे च्यूंटी चुरकट सी |
लक्ष्मीकांत सहे चितवन की चपाट गाल पे बाजै है रहपट सी |
(2)
लक्ष्मीकांत कहे या रंगों पर न डार गिरहस्ती को भार सखी |
खट्टो चाखे कि चाक्खे मिट्ठ्यो या पे न कर तकरार सखी |
पानी को टोटा इस कदर पड़यो बेबस भयो मन मार सखी |
पिचकारी में दारू भर्यो बेबसी मा नी तो सून्यो रहे त्यौहार सखी ||
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