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मित्रों , हमजोलियों ,होली पर इस रचना के बारे में बताएं ,सरस या नीरस जरूर टिप्पणी करें | होली की मस्ती भरी कामनाएं |
शरारत रंग और नशा
शरारती यानी नटखटी | इन शब्दों के साथ किशन कन्हाई मक्खन से लिथड़े ओंठों पर बांसुरी ठहराए पेड़ पर पसरे याद आ जाते हैं | नीचे बहती यमुना स्याह भोर पानी के साथ | पानी के इस श्यामपट (ब्लेक बोर्ड) पर रामखली (खड़िया, चाक) से लिखे अक्षरों कि तरह पानी से खेल करती गौरांग गोपियाँ | बंशी की सुरीली तान इन गोपियों का ध्यान खींच कर पेड़ की टहनियों पर अटका देती है | अपने अटके ध्यान के बिलकुल बाजू में अपने अपने लटके चूनर, अंगिया और घागरे देखकर बौरा जाती हैं | हड़बड़ी में ये उजली शुभ्र गोपियाँ अक्षरों की तरह काले पानी के श्यामपट में तितरबितर हो कर भी एक शब्द बन जाती है “शरारत” |
यह हरकत कन्हैया ने की, यह हरकत गोपियों के साथ हुयी, दोनों को शरारत ही लगी | शरारत खुशमिजाजी की एक हरकत है, जिसने की और जिसके साथ हुई, दोनों को शरारत ही लगनी चाहिए |
रंग के अपने ठाटबाट होते हैं | ये फीके और चटक दोनों तरह के हैं | आदमी औरत की सजधज इनके बिना असंभव है | आदमी की मन:स्थिति से मेल खाने में इन रंगों का जवाब नहीं | अब देख लो, केसरिया पीले नीले कपड़े वृक्ष पर सलेटी (सांवले) कान्हा के साथ हरे हरे पत्तों के बीच | यहाँ ग्वालनों के गुलाबी कपोल लाल पीले हो रहे , चेहरे पर एक रंग आता तो दूसरा जाता | कृष्ण अपने मोरपंख की चमकदार रंगत को सखियों के गालों की तमतमाहट से मिलाते हैं और अनुभव करते हैं मोरपंख की चमक शीतल है जबकि गालों की चमक में सेंक | गोपाल भूरे तने से लिपटे चिपटे नीचे उतरते हैं, बड़ी लाजवाब अप्रतिम अकाट्य सच्ची बातें कहते समझाते हैं | गोपियों के गालों से सुर्खी वापस जाती है और स्वाभाविक रंगत लौट आती है | गोविंदा रंगबिरंगे वस्त्रों के साथ सखियों को सफ़ेद फूल भी देते हैं, शान्ति तथा सखाभाव की सौम्यता को श्वेत पुष्पों से सफ़ेद रंग में रंग देते हैं |
ऐसे कोई भी कौतुक अपना कितना भी रंगबिरंगापन बिखराए अंत में सफ़ेद सा उजला हो जाए तो ही शरारत होता है |
नशा | मादकता | खुमारी | मस्ती | गोपिकाओं के तन जल में मन खुमारी में डुबकी लगा रहे हैं | मोहन की देह डाल के सहारे हवा में और मन चाह के सहारे मस्ती में तैर रहे हैं | एक चेतना में दो अस्तित्व, एक शख्स में दो शख्सियतें, भीतर भीतर एक बोलता है ये कर पर दूसरा बोलता है ये मत कर | एक ढील देता तो दूसरा खींचता, यही खींचतान नशा होता है | हरेक के भीतर के ये दो जब आपस में गुफ़्तगू (बातचीत) करते हुए मुहंजोर, मुहंफट और गुस्ताख हो जाते हैं तो समझ लो व्यक्ति नशे में है | इसमें मन रंजन है, मौज है मस्ती है | इसमें शोखी है, पर निमग्नता भी है | जब गैर इससे आहत होने लगे तो यह नशा फिर नशा नहीं उन्माद हो जाता है, शरारत खुरापात और उपद्रव हो जाती है | मोहन और मोहनियां अपने अपने नशे में है तभी तो यह हरकत सुन्दर शरारत हो गयी |
शरारत,रंग और नशे के त्रिवेणी संगम में उमंग और उल्हास के स्नान से मिली महा उर्मि में सिमटे गोविन्द और गोपियाँ गोकुल की ओर लौट चले, अपनी चुहलबाजी में से खोज निकालते हुए कोई अभिनव शरारत, कोई नूतन रंग और कोई नवल नशा क्यों कि कल होली है |
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