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कंकड़ भर हौसला

सुनो दोस्तों
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कंकड़ भर हौसला

आँख न हो तो –

धरती आकाश की

क्या औकात ?

कि बना ले क्षितिज |

और न हो आँख तो !

क्या क्षितिज की कलई खुल सकेगी ?

सुलगता आत्म बोध

भय मढी बेचैनी

हो ही जाती मौन की अभ्यस्त |

पथराई आँखों से

समाधिस्थ हो जाना

धरती आकाश

मौसम मैदान को

न सोचने का बहाना है |

ठहराव की ये कालजयी भंगिमा

कभी भी

सोच की मर्यादा नहीं ,

बिम्ब है

बचाव की आत्मजयी मुद्रा का |

न हो भरोसा

तो सामने की

दर्पणनुमा दीवार पर

छोड़ दो

सिर्फ एक कंकड़ भर हौसला |

वैसे भी

बेचैनी की नाल में

चुप्पी

न कोई बात होती है ;

बेचैनी की नाल में

चुप्पी से

कोई बात होती है ….

जब तक कि, दागी नहीं जाती |

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