सुनो दोस्तों
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. दो टूक
दो टूक बात ही नहीं होती
दो टूक चुप्पी भी होती है
कौन कहता है?
चुप्पी दूर तक नहीं जाती |
उम्र के एक ठिकाने से
दूसरे ठिकाने तक
चुप्पी का सफ़र
गुपचुप नहीं होता
ठान लिया हो तो
चुप्पी आख़िरी ठौर तक
साथ देती है |
“हरदम
जहां बात में होती है ताक़त किसी हलचल के लिए
किसी ख़ास घड़ी में
खलबली के लिए
चुप्पी काफी हो जाती है |”
हर कभी
प्रतिबन्ध के विरुद्ध
सभी ने झेला होता है
छूट का वाचाल होना |
पर कभी कभी
“जस के तस” से
वाणी से विद्रोह ही मौन का अवतार होता है |
तब
तब
परिवर्तन की गवाही
नियम चुप हो कर देते हैं |
सच में
“जवाब बंद हो तिलिस्म में
तो सवाल पहेली लगता है ” ||
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