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चर्र चर्र चरखा बोले
यह बुद्ध का देश रहा होगा कभी | फिलहाल यह प्रबुद्धों का राष्ट्र है | बुद्ध पद्मासन में स्वयं के नासिकाग्र पर दृष्टि जमाकर ध्यानस्थ मुद्रा में रहा करते हैं | प्रबुद्ध ताड़ासन में ज्ञानस्थ मुद्रा में रह कर प्रतिद्वंदी के नासिकाग्र को ताड़ा और ताका करते हैं | ध्यान को प्राप्त होने के कारण बुद्ध चुप्प रहते हैं | ज्ञान को प्राप्त होने की वजह से प्रबुद्ध चुप्प कभी हो नहीं सकते , रह नहीं सकते,एकालाप (मोनोलॉग ) में निरंतर व्यस्त रहते हैं | ताड़ासन में दोनों हाथ ऊपर रखना अनिवार्य होता है इसलिए प्रबुद्ध किसी भी समस्या और चुनौती पर चुप्प नहीं रहते हुए भी अपने हाथ ऊपर कर लेते हैं |
एकालाप का ताजा तरीन विषय है- मोदी जी एवं चरखा जी |
विवाह पत्रिका में छपा होता है – चि० अमुक संग सौ० कां० अमुकी अथवा सौ० कां० अमुकी संग चि० अमुक | चिरंजीव से शुरू तो वर पार्टी की पत्रिका | सौभाग्य कांक्षी से आरम्भ तो वधु पार्टी की पत्रिका | सब सिस्टमेटिक है, वर तथा वधु के दोनों दलों की ठसक को बराबर मान , ये माने वो हमारे संग और वो माने ये हमारे संग | किसी के भी ठस्स-पने को जरा सी आंच नहीं |
पर यह वाद-विषय अत्यंत गंभीर है , विवाह जितना सरल नहीं उससे एकदम भिन्न | खादी ग्रामोद्योग की इस प्रकाशित पहल में कौन विज्ञापन है और कौन विज्ञप्ति ? मतलब विज्ञापन में प्रचार समाया होता है तथा विज्ञप्ति में दिशा निर्देश जारी होते हैं | विज्ञापन अनुरोध है | विज्ञप्ति आग्रह है | विज्ञापन निवेदन है | विज्ञप्ति हठ है | पेचीदगियां और भी हैं | मसलन, खादी ग्राम उद्योग “अभिधा” से “लक्षणा” हो गया है | खादी रोजगार देने वाला धंधा नहीं चंदा उद्योग वालो का लिबास और झोली है | खादी गाँव कसबे में तन को ढांपने वाली पोषाक नहीं विधान सभा और संसद में मन को छुपाने वाला पर्दा है |
प्रबुद्धों ने जीभ की कसरत और ऊपर हाथ खड़े करने की हरकत के साथ मनन किया | समुद्र मंथन की तर्ज पर गहन विचार मंथन कर डाला | नतीजा निकालना नहीं था, नतीजे पर पहुँचना था, पहुँच गए | तथ्यों से एक सटीक समीकरण फिट कर दिया | आयुष्मान चरखा जी गांधी जी के अत्यंत करीबी हैं | आयुष्मान मोदी जी राष्ट्र के निकटस्थ हैं | एक भाव भीना रिश्ता दिखाई देता है | गाँधी जी गुजरात के हैं, इतिहास बताता है | चरखा जी गांधी जी के साथी हैं | साबरमती गुजरात में चरखा जी आज भी गांधी जी की कुटिया में वास करते हैं | विदेशी भी गवाह है जो आ आ कर उस कुटिया में अभी भी देखते हैं | इस प्रकार चरखा जी की नागरिकता गुजरात की हो जाती है | मोदी जी का आधार कॉर्ड भी गुजरात का है | विदेशी उनके भी गवाह है, बहुत समय उन्होंने उनके साथ गुजार लिया है | इस प्रकार गांधी जी , चरखा जी तथा मोदी जी की एक धरा एवं एक धरातल है |
अब मान की बात है | मोदी जी संग चरखा जी या चरखा जी संग मोदी जी ? ये कोई शादी ब्याह जैसा मामूली मामला तो है नहीं | प्रबुद्धों ने यहाँ भी जुगाड़ लगा लिया | चरखा जी बाएं मोदी जी दायें | मोदी जी बाएं चरखा जी दायें | दो तरह के इश्तहार | जहां गरीबों को रोजगार की चिल्लांपों हो , वहां चरखा जी संग मोदी जी हो जायेंगें | जहां उद्योग , रोजगार पैदा करता है, की गर्जना हो वहां मोदी जी संग चरखा जी हो जायेंगें | ये समझा देना दिहाड़ी वालों को कि जहां चरखे का चक्का दाहिने हाथ में दिखे वहां लोगों में फैला दे कि मोदी जी हर काम सेवा भाव से पूजा की तरह करते हैं और जहां चक्का बाएं हाथ में दिखे तो छाती ठोंक कर बोले कि बड़े से बड़ा काम भी मोदी जी के बाएं हाथ का खेल है |
चरखा जी और मोदी जी के इस युगल चित्र ने राष्ट्रीय प्रबुद्धों को प्रेरणा से लबालब भर दिया है | राष्ट्र में “समरसता” के मुद्दे पर ये स्वनामधन्य प्रबुद्ध हायपर एक्टिव अर्थात चिलचिला गए हैं | पारंपरिक प्रतीकों में आधुनिकता का भाव भर कर समरसता के सन्देश के लिए इन्होंने कमर कस ली है |
प्रबंधन के मूल्य संवर्धन (वेल्यु एडिशन) के सिद्धांत की राष्ट्रीय प्रबुद्धोँ को अच्छी खासी जानकारी है | जैसे चरखा जी व खुले-खुले गांधी जी कपडे की जरुरत को हर हाथ से जोड़ते हैं , वैसे ही चरखा जी और पूरे ढंके मोदी जी खादी को “मेक इन इण्डिया” से बराबर चिपका देते हैं | यह वेल्यु एडिशन है | 19 वीं सदी की कॉटेज़ इंडस्ट्री में वेल्यु एड होकर 21 वीं सदी की कॉर्पोरेट इंडस्ट्री बन जाती है | श्रेय तो राष्ट्रीय प्रबुद्धोँ को जाता है, राष्ट्र आभारी है |
चाचा नेहरू की जैकेट या शेरवानी के बटन होल में गुलाब | मोदी जी के जैकेट या शेरवानी के बटन होल में गुलाब | सौन्दर्य से औदार्य की ओर | सौन्दर्य यानि सुन्दरता | औदार्य मतलब बेबाकी (फ्रेंकनेस) | राष्ट्रीय प्रबुद्ध वेल्यु एड कर रहे हैं, चौड़ी छाती पर गुलाब “स्टार्ट अप इण्डिया” एक फ्रेंक कॉल एक खुला आव्हान | गुलाब वाले मोदी जी , कितनी वजनदार सोच |
वेल्यु एडिशन की सूची में कई प्रतीक हैं | भोलेनाथ का डमरू, कन्हैया की बांसुरी | वैसे भी एक तरफ डमरू और बांसुरी अपने आप में अतीत के सनातनी भाव रखते हैं तो दूसरी तरफ आम जन से भी इनका अच्छा ख़ासा जुड़ाव है , सड़क पर पब्लिक की भीड़ में बांसुरी की लयकारी, डमरू का ताल, मदारी के निर्देशन में बन्दर भालू का नाच, सबके दिमाग में छपा है | मोदी जी के हाथ में डमरू तथा बांसुरी जन आन्दोलन या जन सुधार के प्रतीक बनकर सहजता के साथ युग परिवर्तन या युग क्रान्ति का सन्देश लोगों तक पहुंचा सकते हैं | बन्दर भालू मदारी से सीख सकते हैं तो आदमी तो मजे ले ले कर मोदी जी के सिखाये ‘स्टेप्स’ याद कर लेगा |
अब इंतज़ार है एक के बाद एक फोटुओं का गुलाब और मोदी जी, बांसुरी और मोदी जी, डमरू और मोदी जी, सुदर्शन चक्र और मोदी जी |
डिजिटलाईजेशन का दौर है , इन सब तस्वीरों की “ईमोजी” सबके मोबाईल में और ताक़तवर ऐप “भीम”|
नीचे, ताक़तवर ऐप भीम और असरदार ईमोजी ,
ऊपर , चरखा , बंशी, डमरू और हमारे मोदीजी ,
बीच में सपने लोगों के साथ में रोटी रोजी , जी ||
बुरा मत मानना एक बात गाँठ बाँध लो , ये सब मोदी जी की मन की बात है या नहीं वो कर सकते हैं या नहीं पर राष्ट्रीय प्रबुद्ध पक्के में सब कर सकते हैं |
इन राष्ट्रीय प्रबुद्धोँ को कोई मतलब नहीं है कि मोदी जी ‘वैसे’ हैं ? ये लोगों को सिर्फ याद करवाना चाहते हैं कि मोदी जी “ऐसे” हैं | देश का दारोमदार इस पर है कि मोदी जी न भूलें कि वे ““”कैसे””” हैं |
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